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मजदुर का बेटा गांव में लालटेन से पढाई कर बना DSP, खुद की पढाई के लिए ईंट-भट्टे में काम तक किया

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कोयले के खदानों में ही तो हीरे पाए जाते हैं। इस बात को सच कर दिखाया झारखंड (Jharkhand) के बोकारो (Bokaro) जिले के रहने वाले किशोर कुमार रजक (Kishor Kumar Rajak) ने। जिस परिवार और गाँव में आज तक सरकारी नौकरी का नामो निशान नहीं था उस जगह पर रहकर किशोर कुमार अपने मेहनत के दम पर DSP बने। यह पूरे झारखंड के लिए बहुत बड़ी बात है।

किशोर झारखंड के बोकारो जिले के एक ऐसे गाँव के रहने वाले हैं, जहाँ विकास नाम की कोई चीज नहीं है। एक दलित परिवार में जन्मे किशोर के पिता कोयला खदान में मजदूरी करते थें। उनका गाँव इतना पिछड़ा था कि वहाँ 70 सालों से बिजली तक नहीं पहुँची थी। पढ़ाई के लिए कोई भी अच्छा स्कूल तक नहीं था।

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पिता कोयला खदान में मज़दूर का काम करते थे

बचपन में किशोर के परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत ज़्यादा दयनीय थी। इन लोगों के पास ज़मीन भी नहीं थी जिसपर यह लोग खेती कर सके। जैसे तैसे कर किशोर के पिता को कोयला खदान में मज़दूर का काम मिला। उसके बाद भी बहुत मुश्किल से घर ख़र्च चल पाता था। ऐसे में संभव नहीं था कि किशोर बाहर जाकर अपनी शिक्षा पूरी करें।

स्कूल छोड़कर अपने दोस्तों के साथ मस्ती किया करते थे

किशोर के पिता ने किशोर का दाखिला गाँव के ही एक सरकारी स्कूल में करा दिया। वहाँ भी जाने के बाद किशोर का मन पढ़ाई में नहीं लगता। वह स्कूल छोड़कर दिन भर अपने दोस्तों के साथ ही बाहर खेलते और मस्ती करते थे और छुट्टी होने के पहले स्कूल पहुँच जाते थे। सरकारी स्कूल की भी स्थिति बहुत दयनीय थी, जहाँ कभी बच्चे जाते तो शिक्षक नहीं और शिक्षक आते तो बच्चे नहीं। ऐसे में ठीक ढंग से पढ़ाई कर पाना बहुत मुश्किल था।

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माता-पिता अधिकारी बनने के लिए हमेशा प्रोत्साहित करते

ऐसी परिस्थितियों के बावजूद भी किशोर के माता-पिता उन्हें हमेशा प्रोत्साहित करते रहते कि उन्हें पढ़ लिखकर एक बड़ा आदमी बनना है और एक अधिकारी बनना है। धीरे-धीरे किशोर को भी यह बात समझ आने लगी कि बिना शिक्षा के अपने परिवार की स्थिति को सुधारना संभव नहीं है। इन्हीं सब बातों को सोचते हुए वह धीरे-धीरे पढ़ाई पर ध्यान देने लगे।

हेड मास्टर की बात दिल पर लग गई

अधिकारी बनने के बाद किशोर अपने पिछले दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि वह पढ़ाई तो करते ही और साथ खेतीबाड़ी भी करते थे और शाम को घर आकर बकरी चराने जाया करते थे। लेकिन कहीं ना कहीं गाँव के बच्चों के साथ पढ़ाई कम और मस्तियाँ ज़्यादा होती थी। उन्होंने बताया कि रोज-रोज स्कूल से भागकर खेलने के लिए और फिर छुट्टी के समय वापस आ जाने के लिए एक दिन उनके स्कूल के हेड मास्टर ने उनकी पूरी तरह से पिटाई कर दी।

पिटाई करने के बाद हेड मास्टर ने यह भी समझाया कि अगर तुमलोगों में से कोई भी एक लड़का अच्छे से पढ़ लिख कर बड़ा अधिकारी बन जाए तो इससे मुझे बहुत ख़ुशी होगी और मेरा जीवन सफल हो जाएगा। किशोर ने आगे कहा कि हेड मास्टर की यह बात मेरे दिल पर लग गई और उसके बाद मैंने ख़ुद को पूरी तरह से सुधार लिया और पढ़ाई पर ध्यान देने लगा।

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ग्रेजुएशन के थर्ड ईयर में फेल भी हो गए

बारहवीं कक्षा के बाद किशोर ने इग्नू से हिस्ट्री ऑनर्स के साथ ग्रेजुएशन किया। पढ़ाई में ध्यान ना देने के कारण वह थर्ड ईयर में फेल भी हो गए, लेकिन फिर भी उन्होंने हौसला नहीं खोया। उसी समय उन्होंने यह भी फ़ैसला कर लिया कि उन्हें आगे UPSC की तैयारी करनी है। लेकिन इस तैयारी के लिए उनके पास पैसे नहीं थे। तब उन्होंने अपने कुछ रिश्तेदारों से पैसे उधार लेकर कुछ किताबें खरीदी और तैयारियों में जुट गए।

तैयारी करने के लिए किशोर एक किराए के मकान में रहने लगे और उसी मकान के बच्चों को वह ट्यूशन भी देने लगे, जिससे उनके पढ़ाई का ख़र्च आसानी से हो चलने लगा। किशोर ने बताया कि उन्होंने पढ़ाई के लिए इंट भट्टी में भी काम किया और बिजली नहीं होने के कारण उन्हें लालटेन के पास बैठ कर पढ़ाई करनी पड़ती थी।

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पहले ही प्रयास में हुए सफल

पहली बार किशोर ने 2011 में यूपीएससी की परीक्षा दी। अपने पहले ही प्रयास में उन्होंने सफलता भी पा ली, जिसके बाद उन्हें असिस्टेंट कमांडेंट का पद प्राप्त हुआ और फिर उनकी पदोन्नति डीएसपी के पद पर हुई। इस तरह इतनी मेहनत और लगन से पढ़ाई करने के कारण किशोर अपनी मंज़िल को पा सके। इन मुश्किल हालातों में पढ़ाई करना वाकई बहुत कठिन काम था। लेकिन फिर भी उन्होंने अपने लक्ष्य पर अपनी निगाहें जमाए रखी और सफलता पाई।

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News Desk
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