असम: मुश्किलें तो मानो हमारे जीवन का हिस्सा हैं। किसी के जीवन में कम कठिनाई आती है, तो किसी का जीवन मानो कठिनाइयों से ही भरा होता है। लेकिन इन मुश्किलों का जो सही से समाधान निकाल लेता है, वह समाज में एक उदाहरण बनकर उभरता है। लेकिन जो इन मुश्किलों का रोना लेकर बैठ जाता है, वह ना तो कभी अपने ही जीवन में आनंद का अनुभव करता है और ना ही कभी जीवन में संतुष्टि का आभास कर पाता है।
आज की हमारी ये कहानी भी एक ऐसी ही योद्धा महिला की है। जिसने अपने जीवन के शुरुआती सफ़र में ही पति को खो दिया था। पति ना सिर्फ़ घर चलाते थे, बल्कि उनके रहते कभी परिवार को किसी तरह की परेशानी का सामना भी नहीं करना पड़ता था। लेकिन आज जब उस महिला के पति नहीं रहे, तो उसने ना सिर्फ़ घर की आर्थिक स्थिति को बखूबी संभाला, बल्कि परिवार को बिखरने से भी बचाए रखा। आइए जानते हैं क्या है उस महिला की कहानी।
दीपाली भट्टाचार्य (Dipali Bhattacharya)
इनका नाम दीपाली भट्टाचार्य (Dipali bhattacharya) हैं। ये असम (Asam) में रहती हैं। इनके जीवन में सबकुछ सही चल रहा था कि अचानक इनके पति की मृत्यु हो गई। सही चल रहे जीवन में पति की मृत्यु से मानो अचानक परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट गया। इसके बाद इन्होंने अपने हाथ के हुनर से महज़ 10 हज़ार रुपए लगाकर अचार का काम शुरू किया। इनके हाथ का कमाल ऐसा दिखा कि आज ये ‘प्रकृति’ नाम से अपना एक ब्रांड बना चुकी हैं। जो कि अचार के नाम से मशहूर है।
पति ने ही दिया था बिजनेस का आइडिया
दीपाली बताती हैं कि वह शुरू से ही रसोई में तरह-तरह की चीजें बनाने में बेहद दिलचस्पी रखती थी। इसे देखते हुए उनके पति ने ही उनके इस बिजनेस की कल्पना की थी। साथ ही कंपनी का नाम भी ‘प्रकृति’ (Prakriti) उनकी ही देन है। दीपाली ने उनके ना रहने के बाद सिर्फ़ उसे हक़ीक़त का रूप देने का काम किया है। जब साल 2003 में उनके पति नहीं रहे तो उन्होंने इस काम को शुरू करके सोचा कि इससे कुछ आमदनी की जाए। ताकि अचार के काम से होने वाली आमदनी से उनकी बेटी की देखभाल भी बेहतर तरीके से हो सके।
एक्सपेरिमेंट करने की हैं शौकीन
दीपाली अपने जीवन में तरह-तरह के एक्सपेरिमेंट (Experiment) करने की बेहद शौकीन हैं। ये बात उनके अचार के बिजनेस में भी झलकती है। आज उनके पास अचारों की कई स्पेशल वैरायटी देखने को मिलेगी जैसे मशरूम, हल्दी-नारियल का अचार। ये सब वह अचार के नए-नए प्रयोग के जरिए ही संभव कर पाती हैं। इन सब अचारों से वह लगभग पांच लाख तक की कमाई कर लेती हैं। साथ ही उनके इस काम में उनकी बेटी सुदीत्री भी मदद करती है।
परिवार करता था मसालों का काम
दीपाली बताती हैं कि उनके माता-पिता और भाई मिलकर मसालों का काम करते थे। इसलिए जब उनके घर पर ही मसालों का काम था तो उन्हें तमाम तरह के मसाले और उनके फ्लेवर की बेहतर अच्छी समझ थी। खाने में तमाम तरह के स्वाद के गुर भी उन्होंने अपनी नानी से ही सीखे हुए थे। दीपाली की सास भी बहुत अच्छा खाना बनाती हैं, इसलिए खाने के स्वाद को बढ़ाने में उनसे भी उन्हें भरपूर मदद मिली थी।
कई राज्यों में है उनके अचार की मांग
दीपाली ने इस ब्रांड का रजिस्ट्रेशन साल 2015 में करवाया था। जिसके बाद 10 हज़ार की लागत लगाकर इस काम को शुरू किया। काम लगातार बढ़ता ही गया। आज उनके बनाए अचार की मांग सिर्फ़ असम तक ही सीमित नहीं है। उनके अचार दिल्ली-बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों तक में भी सप्लाई किए जाते हैं। इस मांग को पूरा करने के लिए वह हर महीने दो सौ बोतल अचार बनाती हैं, जो कि हर महीने बिक भी जाता है।
होम डिलीवरी की भी देती हैं सुविधा
दीपाली अपने इस अचार को होम डिलीवरी भी करती हैं। इसके लिए उन्होंने एक आदमी को काम पर रखा हुआ है, जो कि ऑर्डर देने वालों के घरों तक अचार पहुँचाने का काम करता है। वह अपने बनाए अचार पीठा और दही को आसपास की बड़ी दुकानों पर भी सप्लाई करती हैं। ताकि वहाँ से भी अचार बिक सके। जब उन्होंने दुकान खोली थी तो उन्हें अंदाजा भी नहीं था कि एक दिन जीवन यापन के लिए शुरू किया जाने वाला अचार का काम बिजनेस का आकार ले लेगा। आज उनका बनाया इमली का अचार, मेथी अचार, बांस का अचार लोगों को इतना भाया कि वह इससे वह लाखों रुपए की आमदनी कर रही हैं।