किसी ने सच ही कहा है- ” मां के आंचल ने युगों-युगों से भगवानों को पाला है। मां के चरणों में जन्नत है गिरिजाघर और शिवाला है॥”
मां-बच्चे का रिश्ता दुनिया में सर्वश्रेष्ठ रिश्ता होता है, माँ दया और ममत्व से ओत प्रोत काया होती है, जिसे शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता। तमिलनाडु में रहने वाली ऐसी ही एक ममतामयी माँ हैं चूड़ामणि (Churamani), जिन्होंने अपनी ममता के फूल बिखेर कर बहुत से अनाथ बच्चों के जीवन के कांटे चुन लिए और उनकी ज़िन्दगी संवार दी।
अनाथ बच्चों का जीवन कितने कष्टों से गुजरता है यह तो हम समझ ही सकते हैं। चूड़ामणि और उनके पति परमेश्वरण मिलकर ऐसे बेसहारा अनाथ बच्चों को पाल रहे हैं।
उनके तीन बच्चे सुनामी की भेंट चढ़ गए थे
पहले तो अन्य महिलाओं की तरह चूड़ामणि भी अपने बच्चों और परिवार के साथ हंसते खेलते ज़िन्दगी गुजार रही थी। फिर एक दिन एक ऐसी घटना हुई जिसने उनके जीवन को तबाह कर दिया। 26 दिसम्बर 2004 के दिन अचानक से 9.1 की तीव्रता वाला भूकम्प और सुनामी आये, जिसने इनके तीनों बच्चों को भी अपनी चपेट में ले लिया।
किसी भी माता-पिता के लिए उनके बच्चे ही जीवन का सहारा होते हैं। चूड़ामणि और उनके पति अपने इस सहारे को खोने की वज़ह से आघात में थे और दिन-ब-दिन टूट रहे थे। एक बार को तो इन्होंने आत्महत्या करने तक का सोच लिया था। फिर अपने मन में इस दर्द को छुपा कर उन्होंने शहर छोड़ दिया और फिर गाँव में रहने चले गए।
सड़क किनारे बेसहारा बच्चों को देखकर उनका जीवन सुधारने का निश्चय किया
चूड़ामणि और उनके पति जब शहर छोड़कर गाँव की ओर जा रहे थे तब रास्ते में उन्हें सड़कों पर बहुत से अनाथ बच्चे इधर-उधर दरबदर भटकते दिखे, जिनके माता-पिता ना होने की वज़ह से बेसहारा और लाचार, कमजोर स्थिति में थे। जब उन्होंने इन बच्चों को देखा तो उनके मन में दया और ममता उमड़ी, उन्होंने सोचा कि शायद वह इन बच्चों की ज़िन्दगी सुधारने के लिए कुछ कर सकते हैं। फिर इस दंपति ने जीवन समाप्त करने का विचार छोड़ दिया तथा अनाथ बच्चों का जीवन संवारने का निश्चय किया।
घर को ही अनाथ आश्रम बनाया, शुरू की अनाथ बच्चों की परवरिश
चूड़ामणि बताती हैं कि “हमने बहुत से बच्चों को सड़क के किनारे देखा जो बिल्कुल बेसहारा थे, उनके पास ना तो रहने के लिए घर था और ना ही उनके माता-पिता थे। फिर मैंने सोंचा कि मेरे बच्चे तो अब नहीं रहे तो क्यों ना इन बच्चों को आश्रय दिया जाए”! इस महान कार्य की शुरुआत करने के लिए पहले वे चार अनाथ बच्चे लेकर आए जिनमें दो लड़कियाँ थी और दो लड़के। उन्होंने अपने घर को ही अनाथ आश्रम बनाया और उसे नाम दिया ‘नांबिक्केई’ । यह शब्द तमिल भाषा का है, हिन्दी भाषा में इस शब्द मतलब होता है ‘उम्मीद’ । इस प्रकार से यह बच्चे अपना जीवन खत्म करने जा रहे दंपति के जीवन में उम्मीद की किरण लेकर आए थे।
इस प्रकार से धीमे-धीमे उन्होंने इस अनाथ आश्रम का विस्तार किया। उन्होंने इन बच्चों के लिए दो अलग-अलग घर बनवाए, जिनमें से एक घर लड़कियों के लिए था और दूसरा लड़कों के लिए। फिर वे इस अनाथ आश्रम में और अनाथ बच्चों को लाए। इस प्रकार से उनके आश्रम में बच्चों की संख्या बढ़ती गई और 36 हो गई। फिर भी उन्होंने अपना यह कार्य चालू रखा। उस भयंकर सुनामी के बाद से लेकर वर्तमान समय अब तक दंपत्ति करीब 50 बच्चों की ज़िन्दगी संवार चुके हैं।
शिक्षा और कौशल पर भी ध्यान दिया जाता है
चूड़ामणि इस अनाथ आश्रम में बच्चों का पालन पोषण बहुत अच्छी तरह से करती है। उनका उद्देश्य ना सिर्फ़ इन बच्चों को पालना है बल्कि इन्हें एक सफल इंसान बनाना भी है। जहाँ में इन बच्चों की शिक्षा और कौशल के विकास पर भी विशेष ध्यान देती हैं। यहाँ बच्चों को सिर्फ़ पढ़ाया ही नहीं जाता बल्कि उन्हें उच्च शिक्षा प्रदान की जाती है जिससे वे अपनी ज़िन्दगी में आगे जाकर कुछ बन सकें।
इतना ही नहीं उनके इस अनाथ आश्रम में बहुत से बच्चों को तो इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी की शिक्षा का अवसर भी दिया जा रहा है। जहाँ के बहुत से बच्चे अब मल्टीनेशनल कंपनी में भी काम करते हैं। कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जो वही अनाथ आश्रम में रहकर सेवा कार्य करते हैं। इस प्रकार से चूड़ामणि के इस अनाथ आश्रम में बच्चों के सर्वांगीण विकास पर ध्यान दिया जाता है।
अनाथ बच्चों के पालन को बनाया जीवन का लक्ष्य
चूड़ामणि और उनके पति जब टूट गए थे, यह बेसहारा बच्चे उनके जीवन में उम्मीद लेकर आए और उन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी इन बच्चों के नाम कर दी। चूड़ामणि और उनके पति का कहना है कि “हमारा यह मिशन सारी ज़िन्दगी चलता रहेगा क्योंकि हम अपने बच्चों को सम्मान देना चाहते हैं”।
अब इस दंपति ने इन बच्चों की शिक्षा, उनकी परवरिश और इन्हें एक अच्छा सफल इंसान बनाने को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है। वे अपने जीवन का हर एक लम्हा इन बच्चों को संवारने में लगाना चाहते हैं।