Homeज्ञानआदिवासी परिवार में जन्म लेने वाले बिरसा मुंडा को कैसे मिला भगवान...

आदिवासी परिवार में जन्म लेने वाले बिरसा मुंडा को कैसे मिला भगवान का दर्जा, जानें उनके जीवन की पूरी कहानी

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

Biography of Birsa Munda in Hindi : भारत को ब्रिटिश हुकुमत से आजादी दिलाने के लिए सैकड़ों स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान गवाई हैं, जो इतिहास के पन्नों पर हमेशा अमर रहेंगे। उन्हीं स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे बिरसा मुंडा, जिन्हें आदिवासी समाज के लोग भगवान का दर्जा देते थे।

बिरसा मुंडा (Birsa Munda) ने न सिर्फ भारत की आजादी के लिए ब्रिटिश सैनिकों से दो-दो हाथ किए थे, बल्कि आदिवासी समाज को आजादी के आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए भी प्रेरित किया था। बिरसा मुंडा का जीवन बिल्कुल भी आसान नहीं था, लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने लोगों को आजादी के लिए लड़ना सिखाया था।

कौन थे बिरसा मुंडा? | Who was Birsa Munda?

बिरसा मुंडा जीवनी : बिरसा मुंडा का जन्म (Birsa Munda Birthday) 15 नवंबर 1875 को झारखंड के खूंटी जिले में स्थित उलीहातू नामक एक छोटे से गाँव में हुआ था, जहाँ मुंडा जनजाति के लोग निवास करते थे। बिरसा मुंडा ने गुलाम भारत में जन्म लिया था, लिहाजा उन्होंने बचपन से ही अंग्रेजों का आतंक और क्रूरूता देखी थी।

बिरसा मुंडा के पिता का नाम सुगना मुंडा और माता का नाम करमी था, जो पेशे से किसान थे और खेती करके अपना पेट पालते थे। बिरसा मुंडा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सलगा स्कूल से प्राप्त की थी, जिसे जयपाल नाग द्वारा चलाया जाता था। इसके बाद उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए बिरसा चाईबासा चले गए थे, जहाँ उन्होंने पहली बार अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई थी।

लेकिन बिरसा मुंडा को इस तीखी आलोचना की वजह से स्कूल से निकाल दिया गया था, जिसके बाद उन्होंने साल 1891 में बंदगांव में धार्मिक ग्रंथों की शिक्षा प्राप्त लेना शुरू कर दिया था। इस दौरान उन्होंने वैष्णव धर्म के प्रारंभिक सिद्धांतों को समझने के लिए रामायण और महाभारत जैसे धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया, जिसके बाद उनकी रूचि धर्म में बढ़ती चली गई।

अहिंसा के पुजारी थे बिरसा मुंडा

बिरसा मुंडा (Birsa Munda) अंग्रेजों से देश को आजादी दिलाना चाहते थे, लेकिन इसके लिए वह हिंसा करने के पक्ष में बिल्कुल भी नहीं थे। ऐसे में बिरसा मुंडा ने जन आंदोलन के जरिए ब्रिटिश शासकों की नाक में दम करने का फैसला किया, क्योंकि वह अपने जल, जंगल और जमीन के लिए लड़ाई लड़ रहे थे।

लेकिन अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने की वजह से बिरसा मुंडा को 22 अगस्त 1895 को गिरफ्तार कर लिया गया था, जिसके बाद उनके ऊपर मुकदमा चलाया गया और कोर्ट ने उन्हें 2 साल जेल की सजा सुनाई थी। बिरसा मुंडा जानते थे कि उनके जेल जाने से आदिवासी समुदाय के लोग निराश हो जाएंगे, लिहाजा उन्होंने जेल जाते वक्त यह संदेश दिया कि मैं जल्द वापस लौट कर आऊंगा।

बिरसा मुंडा अपने उद्देश्य को लेकर बिल्कुल सटीक सोच रखते थे, लिहाजा उन्होंने कहा था कि उन्हें जेल से बाहर आने से कोई नहीं रोक सकता है फिर चाहे उन्हें जेल तोड़कर ही बाहर क्यों न आना पड़े। खैर 2 साल जेल की सजा काटने के बाद बिरसा मुंडा आजाद हो गए, जिसके बाद आदिवासी समुदाय के लोगों उनका और भी ज्यादा आदर सम्मान करने लगे थे।

आदिवासी समुदायों को करते थे एकजुट

बिरसा मुंडा (Birsa Munda) आजादी के आंदोलन में लोगों को जोड़ने के लिए गाँव गांव जाते थे, जबकि तीर धनुष और कुल्हाड़ी जैसे पारंपरिक हथियारों से अंग्रेजों की बंदूक व तोप का सामना करते थे। उन्होंने ठान लिया था कि वह ब्रिटिश हुकुमत से अपने जल, जंगल और जमीन को हासिल करके रखेंगे, जिसके लिए वह आंदोलन करते थे।

ऐसे में जनवरी 1900 में बिरसा मुंडा डोंबरी पहाड़ पर एक जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे, तभी ब्रिटिश सैनिकों ने उनके ऊपर हमला कर दिया था। इस हमले में कई आदिवासी मारे गए थे, जबकि सैकड़ों लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे। बिरसा मुंडा इस खूनी संघर्ष से बच गए थे, लेकिन ब्रिटिश सेना ने उनकी गिरफ्तारी का वारंट निकाल दिया था।

क्या साजिश के तहत हुई थी हत्या? 
ऐसे में 3 मार्च 1900 को अंग्रेजों ने बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर लिया था, जिसके बाद उन्हें जेल में डाल दिया गया था। जेल में जाने के बाद बिरसा मुंडा की तबीयत दिन ब दिन खराब होती चली गई, जिसकी वजह से 9 जून 1900 को 25 सला की उम्र में उनका निधन हो गया था। हालांकि बिरसा मुंडा की मौत को लेकर लोगों का मानना है कि अंग्रेजों ने उन्हें जानबूझ कर जहर देकर मौत के घाट उतारा था।

दरअसल आदिवासी समुदाय के लोग बिरसा मुंडा की बातों को बहुत ध्यान से सुनते थे और उनकी सेना में शामिल हो जाते थे, जिसकी वजह से ब्रिटिश अधिकारियों को यह भय था कि कहीं बिरसा के नेतृत्व में उनकी सरकार न गिर जाए। बिरसा मुंडा की मौत के बाद उनके शव को कोकर के डिस्टलरी में दफनाया गया था, जो आज एक ऐतिहासिक समाधि स्थल बन चुका है।

बेहतरी वैद्य थे बिरसा मुंडा

बिरसा मुंडा (Birsa Munda) को जड़ी बूटियों को अच्छा ज्ञान था, जिसकी वजह से वह बीमार व्यक्ति का इलाज मिनटों में कर देते थे। कहा जाता है कि बिरसा जिस बीमार व्यक्ति को छू लेते थे, वह बिल्कुल स्वस्थ हो जाता था। यही वजह थी कि मुंडा जनजाति के लोग उन्हें भगवान का दर्जा देते थे।

इतना ही नहीं बिरसा मुंडा (Birsa Munda) द्वारा जल, जंगल और जमीन के लिए चलाए गए विभिन्न आंदोलन की वजह से लोग उन्हें धरती आबा कहकर भी पुकारा जाता था। बिरसा मुंडा ने देश को आजादी दिलाने के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया था, जिसकी वजह से उन्हें क्रांतिकारी भगवान बिरसा मुंडा कहा जाता है।

इसे भी पढ़ें –

यह भी पढ़ें
Shivani Bhandari
Shivani Bhandari
शिवानी भंडारी एक कंटेंट राइटर है, जो मीडिया और कहानी से जुड़ा लेखन करती हैं। शिवानी ने पत्रकारिता में M.A की डिग्री ली है और फिलहाल AWESOME GYAN के लिए फ्रीलांसर कार्य कर रही हैं।

Most Popular