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कभी खेतों में नंगे पैर प्रैक्टिस कर देश को गोल्ड मेडल दिलाने वाली हिमा दास, अब DSP बन करेंगी देश सेवा 

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यदि आप खेलों में थोड़ी भी रूचि रखते हो, तो आपने ओलंपिक 2019 में देश को गोल्ड मेडल दिलाने वाली हिमा दास का नाम ज़रूर सुना होगा। अगर नहीं भी सुना है तो आज आपको हिमा दास की कहानी ज़रूर जाननी चाहिए। आपने समाचार चैनलों में खेलों के किसी बड़े आयोजन से पहले खिलाड़ियों को मैदान में प्रैक्टिस कर पसीना बहाते हुए ज़रूर देखा होगा। उन्हें फाइनल मैच से पहले कोच की निगरानी में प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी को किस तरह से चारों खाने चित करना है इस पर मंथन करते हुए भी देखा होगा। उन्हें कोच हर तरह से बता कर भेजते हैं कि मैदान में कौन कौन-सी गलतियाँ करने से बचना है।

लेकिन हिमा दास (Hima Das) के पास ना तो बेहतरीन कोच, ना मैदान और ना ही संसाधन थे। फिर भी हिमा दास ने 2019 के ओंलंपिक में देश को गोल्ड मेडल दिलवाकर अपना लोहा मनवाया था। अब हिमा दास DSP बनने जा रही हैं। ऐसे में आज हम उनके जीवन की पूरी कहानी आपको बताने जा रहे हैं।

झोपड़ी में गुज़ारा है बचपन (Hima Das)

ढिंग एक्सप्रेस हिमा दास का जन्म असम में हुआ था। हिमा दास के परिवार की हालत ये थी कि उनके पास रहने को अपना घर भी नहीं था। उनके माता-पिता खेतों में मजदूरी कर पेट का भरण पोषण करते थे। ऐसे में हिमा दास को उन्होंने कुछ सालों तक पास के ही सरकारी स्कूल में पढ़ाया फिर जैसे ही हिमा दास थोड़ी बड़ी हुई उन्हें भी अपने पिता के साथ खेतों में काम करने के लिए जाना पड़ता था। खेलों में होनहार होने के बावजूद हिमा दास के माता-पिता उन्हें इस तरफ़ आगे नहीं बढ़ा सकते थे। क्योंकि परिवार आर्थिक तंगीं के बोझ के तले दबा हुआ था।

Hima Das ने इस तरह चुनी एथलीट बनने की राह

एक तरफ़ जहाँ पिता खेतों में काम करते थे तो वहीं दूसरी ओर हिमा दास लड़कों के साथ फुटबॉल खेलती थीं। हिमा (Hima Das) उस समय भी लड़कों को पीछे छोड़ देती थी। हिमा का यह अंदाज़ देख कोच निपोन दास तो हैरान ही रह गए थे। जिसके बाद उन्होंने हिमा को एथलीट बनने की सलाह दी। इसके बाद हिमा दास ने एथलीट बनने की प्रैक्टिस शुरू कर दी।

खेतों में नंगे पैर दौड़ती थी Hima Das

एथलीट बनने का सपना हिमा दास के लिए इतना आसान नहीं था। क्योंकि ना उनके पास कोई मैदान था, ना ही एथलीट के पहनने वाले जूते। जिसकों पहन कर वह दौड़ का अभ्यास कर सकें। ऐसे में हिमा दास उनकी लगन को देखते हुए उनके कोच निपोन दास ने बेहद मदद की। हिमा दास बताती हैं कि वह खेतों में नंगे पैर दौड़ का अभ्यास करती थी। उनके लिए दूसरे खिलाडी को मिलने वाले संसाधन दूर कौड़ी के बराबर थे। लेकिन उनका सपना था कि एक दिन वह अपने खेल के दम पर देश का मान-सम्मान बढ़ाएँ।  

हालातों की ही बना लिया हथियार

इसके बाद हिमा दास ने न सिर्फ़ देश में बल्कि विदेश तक अपनी पहचान बनाई है। वह पहली भारतीय महिला एथलीट हैं जिन्होंने किसी भी फॉर्मेट में गोल्ड मेडल जीता है। उन्होंने IAAF विश्व U20 चैंपियनशिप में 51.46 सेकंड में यह उपलब्धि अपने नाम हासिल की। आपको बता दें कि हिमा साल 2019 में पांच स्वर्ण पदक जीत चुकी हैं। हिमा ने 400 मीटर ट्रैक इवेंट रेस 51.46 सेकंड में पूरी की। इसके बाद तो मानो हिमा दास सुपर स्टार बन गई। हर कोई उनकी कहानी को जानना चाहता था। पूरा देश उनके स्वागत के लिए बांहें फैलाए विदेश से आने के इंतज़ार में था।

जीत के बाद Adidas ने बनाया ब्रांड अंबेसडर

एक समय ऐसा था जब हिमा दास के पास दौड़ने के लिए उनके पांव में जूते तक नहीं हुआ करते थे। वह नंगे पांव ही खेतों में दौड़ लगाती थी। उन्हें इसकी ज़रूरत तो थी, लेकिन परिवार के पास उस वक़्त इतने पैसे नहीं थे कि वह हिमा को जूते खरीद कर दे सकें। लेकिन उनके पिता ने फिर भी उन्हें 1200 के जूते खरीद कर दिए थे। हिमा दास ने कड़ी मेहनत की और इसी की बदौलत वह Adidas की ब्रांड अंबेसडर बनीं। कभी हिमा के पास जूते नहीं थे लेकिन आज हिमा ख़ुद जूतों के ब्रांड की अंबेसडर हैं। हिमा दास को अपने काम के लिए बहुत सारे अवॉर्ड्स भी मिल चुके हैं।

अब बनेंगी असम सरकार में DSP

लगातार मिली कामयाबी के बाद हिमा दास को अब सरकार ने एक नई उपलब्धि से नवाजा है। हिमा दास अब असम सरकार में बतौर DSP काम करने जा रही हैं। हिमा दास बताती हैं कि उनकी माँ का बचपन से सपना था कि वह पुलिस में जाएँ। इसी शौक को पूरा करने के लिए वह मेले के दौरान उन्हें नकली बंदूक दिलवाया करती थी। आज हिमा अपनी मेहनत से हक़ीक़त में पुलिस आधिकारी बन गई हैं। तो उनकी माँ फूले नहीं समा रही।

क्यों पीछे छूट जाते हैं होनहार?

हिमा दास (Hima Das) की कहानी भले ही हम सभी को प्रेरणा दे। लेकिन हिमा दास की कहानी हमें सोचने को भी मजबूर करती है। हिमा दास तो भाग्यशाली थी जो हालातों के आगे झुकी नहीं। लेकिन सवाल है कि देश में अगर इतने होनहार खिलाड़ी इस तरह से संसाधनों के अभाव में प्रैक्टिस करेंगे, तो भला कैसे हम और हमारा सिस्टम उनके साथ न्याय करेगा? क्या हमारी सरकार को नहीं चाहिए कि हर गली-मोहल्ले में इस तरह के होनहार खिलाड़ियों की पहचान करे। ताकि फिर कभी किसी को हिमा दास की तरह अपनी दर्द भरी कहानी देश को ना सुनानी पड़े।

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News Desk
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